Aman Mishra

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रुद्र : भाग-४

           शहर के इस इलाके में आबादी थोड़ी कम है। इसलिए यहाँ शोर-शराबा भी अधिक नहीं है। यहाँ ज्यादातर उद्योगपति या फिर सरकारी अफसरों के निवास स्थान हैं। इस वजह से अब तक यहाँ के निवासी आर्या के आतंक से प्रभावित नहीं हैं। हाँ, कुछ बड़े लोग ऐसे भी हैं, जो आर्या की मदद भी करते हैं, उसके गलत कामों के लिए पैसे देकर। वे लोग ऐसा इसलिए करते हैं, ताकि आर्या उन्हें शांति से जीने दे। यह भी एक कारण है, जिसकी वजह से आर्या यहाँ के लोगों को परेशान नहीं करता है।
            शाम के समय यह स्थान काफी सुंदर लगता है। ऐसा लगता है, जैसे मुंबई शहर के अंदर एक और छोटा-सा शहर बस गया हो। चारों तरफ जहाँ कुछ दूरी पर बड़े-बड़े घर हैं, वहीं थोड़ी ही दूरी पर लगभग सभी घरों के बीच एक हवेली भी है। हवेली से थोड़ा और आगे जाने पर एक तालाब भी है। अक्सर लोग शाम के समय तालाब या फिर पार्क में बैठकर दिनभर की थकावट को दूर करते हैं, और आपस में बातें कर समय बिताते हैं।
            शाम के लगभग साढ़े पाँच बजे थे। सड़क से आती हुई एक काले रंग की जीप इस इलाके की ओर मुड़ गयी। अब रास्ते के दोनों ओर कुछ दूरी पर घर दिख रहे थे। कुछ सेकंड्स बाद वो गाड़ी एक बड़ी सी हवेली के सामने आ पहुँची। 
            सामने बड़ा सा गेट था। गेट के दोनों ओर हाथियों की मूर्ति रखी हुई थी। गाड़ी उस गेट से होती हुई अंदर की ओर चली गई। जिस रास्ते पर गाड़ी जा रही थी, उसके दोनों ओर बगीचे थे। थोड़ा और आगे एक बड़ा-सा फव्वारा था। फव्वारे से थोड़ा आगे एक तुलसी का पौधा लगा हुआ था। पौधे के आसपास फूल पड़े थे, जिससे ये पता चल रहा था कि यहाँ नियमित तौर पर तुलसी पूजन होता है। बाईं ओर बाउंड्री वॉल के पास एक बड़ा सा आम का पेड़ था।
           विराज ने गाड़ी को दाहिनी ओर मोड़कर पहले से खड़ी दो गाड़ियों के पास खड़ा कर दिया।
           अभय, विराज, रुद्र और विकास चारों गाड़ी से उतरे। रुद्र ने आसपास देखा। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। एक साल बाद घर आकर उसे वाकई बहुत अच्छा लग रहा था। अब उसे जल्द से जल्द अपनी माँ और पापा से मिलना था। इधर-उधर देखता हुआ वो अपने दोस्तों के साथ हवेली के मुख्य दरवाजे की ओर मुड़ा। अचानक ही रुद्र का ध्यान पीछे गेट की ओर गया। वहाँ से एक वृद्ध आदमी लगभग भागता हुआ आया। उसे देखकर रुद्र उसकी ओर बढ़ा। उस व्यक्ति ने सादा से सफेद कुर्ता और धोती पहनी हुई थी। बाल लगभग पूरे सफेद थे। सफेद मूँछ और चेहरे की झुर्रियों से पता चल रहा था कि उनकी उम्र ६०-६५ के आसपास होगी। वो वृद्ध रुद्र को बड़ी प्रेम भावना के साथ आँखों में नमी लिए देख रहा था।
           रुद्र आगे बढ़ कर उस व्यक्ति के पैर छूने के लिए झुका। उसने रुद्र के कंधों को पकड़ कर उसे उठाया।
          "ये क्या कर रहे हो रुद्र बाबा? एक नौकर के पैर छूना आपको शोभा नहीं देता है।" कहते हुए वृद्ध थोड़ा पीछे हो गए।

         "अरे मुरली काका। आपने मुझे अपनी गोद में खिलाया है। आप हमारे बुजुर्ग हैं। हमें आशीर्वाद दीजिये।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा और मुरली काका के पाँव छुए।
           मुरली काका ने रुद्र के सर पर हाथ रखा। फिर उनकी नजर पीछे खड़े अभय, विराज और विकास पर पड़ी। मुरली काका उन्हें पहचान गए, क्योंकि ये तीनों बचपन से ही यहाँ आते रहे हैं। रुद्र के माता पिता इन तीनों में और रुद्र में कोई अंतर नहीं करते थे। अभय, विराज और विकास ने भी उन्हें प्रणाम किया।

         "काका बाकी लोग कहाँ हैं?" रुद्र ने मुरली काका से पूछा।

         "बेटा तुमने अपने आने की खबर ही नहीं दी हमें। वरना अब तक तो ये पूरी हवेली नई-नवेली दुल्हन की तरह सजी हुई होती। इस वक्त तो घर में बस छोटी मालकिन हैं। बड़े मालिक, मालकिन के साथ मंदिर गए हैं, और छोटे मालिक अभी थोड़ी देर में आने वाले हैं।" मुरली काका ने मुस्कान के साथ कहा।
           रुद्र के परिवार में उसके दादा, दादी, माँ और पापा रहते थे। रुद्र के दादा जी, रणधीर रघुवंशी ही हैं जिन्होंने श्रीराम ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की नींव रखी थी। आज भी उनके कर्मचारी उन्हें बड़े मालिक कहकर संबोधित करते हैं। अब बढ़ती उम्र के साथ रुद्र के दादा जी घर में आराम करते हैं, या फिर कभी कभार रुद्र की दादी जी को लेकर मंदिर चले जाते हैं। अब पूरा बिज़नेस रुद्र के पिता, पुरुषोत्तम रघुवंशी ही संभालते हैं।

            "ठीक है। पहले चलकर माँ से मिल लेते हैं।" कहते हुए रुद्र दरवाजे की तरफ चल पड़ा। बाकी सभी भी रुद्र और मुरली काका के पीछे चलने लगे। रुद्र ने आगे जाकर घंटी बजाई। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला।
             सामने एक ५०-५५ की उम्र की महिला खड़ी थी। उनके चेहरे का रंग गोरा था और माथे पर छोटी सी बिंदी लगी हुई थी। पीले रंग की साड़ी और कुछ गहने पहनी थी उन्होंने। रुद्र को देखकर उनकी आँखों में पानी भर आया। रुद्र की भी आँखें नम हो गयी थीं। रुद्र उनके पैर छूने के लिए झुका और उन्होंने उसके सर पर प्रेम से हाथ फेरा। उन्होंने रुद्र को गले से लगा लिया।
          "कैसी हो माँ?" रुद्र ने भरे गले से कहा।

          "अब तक तो ठीक थी और अब तुझे देखकर एकदम अच्छी हो गई हूँ।बस तेरी ही राह देख रही थी बेटे। कितना समय हो गया था तुझे देखे। घर एकदम खाली हो गया था। और ये तेरे दोस्त, ये तीनों भी तेरे जाने के बाद एक दिन भी यहाँ नहीं आए। अब अंदर आने का इरादा है या भूल ही गए हो हम लोगों को।" रुद्र की माँ ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।
          अभय, विराज और विकास ने रुद्र की माँ से आशीर्वाद लिया और सभी अंदर आ गए। हॉल काफी बड़ा था। दीवारों को पीले रंग से रंगा गया था। जगह-जगह परिवार वालों की और पूर्वजों की तस्वीरें लगी हुई थीं। मध्य में सोफे रखे हुए थे और पास ही में एक कांच का टेबल था। हॉल के दाहिनी ओर में डाइनिंग टेबल और कुर्सियां लगी हुई थीं।
बाईं ओर रसोईघर था। मुरली काका सभी को सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए रसोईघर में चले गए। रुद्र, अभय, विराज, विकास और रुद्र की माँ अंजना जी सोफे पर बैठ गए। सारे यहाँ-वहाँ की बातें करने लगे और इतने में मुरली काका भी पानी के ग्लास टेबल पर रखकर एक कोने में खड़े हो गए। 
         
          बातें चल ही रही थीं कि अचानक से अंजना जी ने रुद्र से पूछा, "वैसे बेटा, अब जब तुम्हारी ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है, तो अब अपने पापा के बिज़नेस को संभालने की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हो जाओ।" अंजना जी ने रुद्र को देख मुस्कुराते हुए कहा।
          इतना सुनते ही चारों के चेहरों से हँसी गायब हो गयी। विकास पानी पीते-पीते झटका लगा और उसे खांसी आने लगी। विराज ने अपना हाथ पीछे करके विकास की पीठ पर धीरे से एक मुक्का मारा। अभय और रुद्र आपस में कुछ इशारे कर रहे थे। चारों की इन हरकतों को देख अंजना जी ने एक संदेह पूर्ण दृष्टि इन सभी पर डाली।

           "अम्म.....वो माँ....मैं..." रुद्र ने गला साफ करते हुए कहने की कोशिश की।

          "रुद्र साफ-साफ कहो बात क्या है।" अंजना जी ने रुद्र की ओर सवालिया नजरों से देखते हुए कहा।

          रुद्र ने अपने दोस्तों की ओर देखा। तीनों ने इशारे से रुद्र को सब सच बताने का इशारा किया।

           "माँ वो बात ये है कि.....मैंने.... मैंने किसी आईटी कंपनी में ट्रेनिंग नहीं की और ना ही कभी किसी आईटी कंपनी में इंटरव्यू दिया है।" रुद्र ने सर झुकाकर  अटकते हुए कहा।

          अंजना जी यह सुनकर चौंक गयीं। उन्होंने बिना कुछ कहे बस रुद्र के आगे बढ़ने का इंतजार किया। रुद्र ने उन्हें धीरे-धीरे सारी बातें स्पष्ट रूप से बताई। रुद्र की बातें सुनकर वे थोड़ा परेशान लगने लगीं।

          "बेटा मैं तो तुम्हारे फैसले में तुम्हारे साथ हूँ। लेकिन तुम्हारे पापा को लेकर मुझे चिंता हो रही है। तुम तो जानते हो उन्हें। उन्हें किसी का अपने फैसले के खिलाफ जाना पसंद नहीं।" अंजना जी ने चिंतित स्वर में कहा।

          "छोटी मालकिन बुरा ना माने तो मैं कुछ कहूँ।" मुरली काका ने अंजना जी से पूछा।

          "हाँ, मुरली काका कहिए।" अंजना जी ने मुरली काका से कहा।

          "मालकिन आपकी बात बिल्कुल सही है। छोटे मालिक शायद रुद्र बाबा के पुलिस अफसर बनने की बात सुनकर नाराज हो सकते हैं। लेकिन वे कभी भी बड़े मालिक की बात नहीं टालेंगे। क्यों ना हम पहले उन्हें इस बारे में बताएँ।

         मुरली काका की बात सुनकर रुद्र और उसके दोस्तों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। अंजना जी की आँखों में अब चिंता की जगह, आशा नजर आ रही थी।

         "अरे हाँ! मुरली काका आपकी बात बिल्कुल सही है। हम बाबूजी और माँ जी के आने का इंतजार करते हैं। उनके आते ही उन्हें सारी बात बता देंगे।" अंजना जी ने उत्साह पूर्ण लहजे में कहा।

         "हाँ। दादा जी और दादी जी के होते हुए हमें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा। अभय, विराज और विकास के चेहरों पर मुस्कान खिल उठी।
          
          "किस बात की चिंता है मेरे शेर को?"
         
           इससे पहले कोई और कुछ कहता, एक कड़क आवाज हॉल के दरवाजे की ओर से आई।

          सभी ने एक साथ दरवाजे की ओर देखा।
दरवाजे पर एक वृद्ध दंपत्ति खड़े थे। उन्हें देखते ही रुद्र के चेहरे पर मुस्कान आ गई। रुद्र बचपन से ही अपने घर में सभी का लाडला था, लेकिन उसे सबसे ज्यादा लगाव अपने दादा और दादी से है।

         रुद्र भाग कर गया और अपने दादा-दादी का आशीर्वाद लिया। रुद्र के दादा जी गौर वर्ण के हैं। उनके बाल आधे से ज्यादा श्वेत थे। उनकी घनी मूछें थीं। उनकी लंबाई लगभग ६ फीट थी। रुद्र के दादा ने केसरिया रंग का कुर्ता और धोती पहनी हुई थी। उसके ऊपर एक गाढ़े नीले रंग का नेहरू जैकेट पहना हुआ था। गले में एक सोने की चैन थी और चश्मा पहना था।
उनके साथ ही रुद्र की दादी जी खड़ी थीं। उन्होंने भी चश्मा लगाया हुआ था। उनकी लंबाई रुद्र के दादाजी के कंधे तक थी। उन्होंने हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी और उसके ऊपर कुछ गहनों के साथ हाथों में सोने के कंगन।

           "वाह! तुझे देखकर बहुत खुशी हुई। कितने समय बाद आया है हमारा नटखट।" रुद्र की दादी ने रुद्र के कान खींचते हुए कहा।

          "ये बिल्कुल सही किया तुमने सुवर्णा। ये तो हमें भूल ही गया था।" रुद्र के दादा ने उसकी दादी से कहा।

         "क्या दादू। मैं आप लोगों को कैसे भूल सकता हूँ।" रुद्र, दादा-दादी के साथ सोफे की ओर बढ़ते हुए बोला।

         रुद्र अपने दादा-दादी के सामने वाले सोफे पर बैठ गया और अंजना जी ने उन दोनों के पाँव छूकर मुरली काका को पानी लाने को कहा।
अभय, विराज और विकास ने भी रुद्र के दादा-दादी का आशीर्वाद लिया।

        "वैसे हमारे आने के पहले किस बात की चिंता सता रही थी तुम लोगों को?" रणधीर जी ने रुद्र और बाकी सब को एक नजर देखते हुए कहा।

        यह सुनते ही सभी एक साथ रुद्र की ओर देखने लगे। सबका इस तरह खुद को घूरना रुद्र को और असहज बना रहा था। उसने जैसे-तैसे बोलना शुरू किया और सारी बात दादा-दादी को बता दी।
रुद्र के दादा उसकी बातें सुनकर उठ खड़े हुए। रुद्र को लगने लगा कि शायद इस बार दादा जी भी पापा का साथ देंगे। रुद्र के दादा जी रुद्र के पास आए और अपना एक हाथ ऊपर उठाया। रुद्र के साथ अभय, विराज और विकास ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं। काफी देर तक कुछ आवाज ना आने पर उन्होंने सामने देखा। रणधीर जी ने रुद्र के कंधे पर हाथ रखा हुआ था और मुस्कुरा रहे थे।

          "वाह मेरे शेर। मैं भी कभी पुलिस अफसर बनने के सपने देखता था। लेकिन उसी समय मेरे पिता जी का स्वर्गवास हो गया था और सारी जिम्मेदारी मुझपर आ गई। तू बिल्कुल चिंता मत कर। मैं बात करूँगा पुरुषोत्तम से।" कहते हुए उन्होंने रुद्र के सर पर प्यार से हाथ फेरा।
           सभी के चेहरों पर मुस्कान आ गई। अचानक ही मुरली काका रसोई से भागते हुए आए। सभी उन्हें हैरान होकर देख रहे थे।

           "बड़े मालिक....वो....वो छोटे मालिक आ रहे हैं। मैंने....उन्हें रसोई की खिड़की से....देखा।" मुरली काका ने हांफते हुए कहा।

          रुद्र और उसके दोस्तों के माथे चिंता की लकीरें उभर आयीं। अंजना जी ने रुद्र की ओर देखा और उसे चिंता ना करने का इशारा किया। सभी की नजरें दरवाजे की ओर चली गई।









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             "मैंने आज सुबह की स्टेशन के सीसीटीवी कैमरा की फूटेज माँगी थी। क्या हुआ उसका?" आर्या में फोन पर किसी को लगभग चिल्लाते हुए कहा।

             "सर....सर मैंने वो सीडी आपके पते पर भेज दी है। थोड़ी ही देर में वो पहुँच जाएगी।" दूसरी ओर से किसी ने सहमी हुई आवाज में कहा।

             आर्या ने बिना कोई जवाब दिए फोन सोफे पर पटक दिया। जबसे आर्या को उस इंसान ने फोन पर शेरा के कातिल को ढूंढने की जिम्मेदारी उसे सौंपी है, तबसे आर्या ज्यादातर चिंता में ही डूबा हुआ है।

             "जल्द से जल्द इस लड़के के बारे में पता लगाना होगा वरना ये अधिराज साहब चैन से जीने नहीं देंगे।







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           क्या रुद्र के दादा अपने पोते की परेशानी का समाधान कर पाएँगे? क्या रुद्र के पिता उसके दादाजी की बात मानेंगे?
           कौन है ये अधिराज जिससे आर्या भी डरता है? क्या होगा जब आर्या को रुद्र के बारे में पता चलेगा? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।

         





        

        

         

      

       
            

         
          

           
   
            

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1 Comments

Shaba

05-Jul-2021 03:14 PM

चलिए! हमारा नायक घर तो पहुॅ॑च गया। हर चीज की डिटेलिंग आपने शानदार की है। लोगों के हाव-भाव भी बहुत अच्छी तरह उकेरे हैं। लेखन में उत्तरोत्तर प्रगति के लिए बधाईयाॅ॑।

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